

मेरा नाम निरंजना राऊत है। मै महाराष्ट्र के नागपूर जिले के दहेगाव की निवासी हुँ। 25 साल से अपने लडके के साथ एकल महिला के रूप में सम्मान से जीवनयापन कर रही हुँ। आज हर तरफ हिंसा व बलात्कार जैसी घटनाये निरंतर बढ रही है। मै भी महिलाओं के उपर होनेवाली पारिवारिक हिंसा रोकथाम करने का सक्रिय हिस्सा लेती हुँ। अपने अस्तित्व की लडाई लढते समय मेरे माँ-पिताजी व प्रकृति संस्था का हमेशा सहकार्य रहा जिससे कठिन प्रसंग में भी मैने हार नही मानी हमेशा लडकर आगे बढती रही हुँ। मेरे जैसी कई महिलाओं को यह साथ नही मिल पाता] पर मेरी कहानी उनके जिवन में प्रेरणा का काम कर सकती है।
मेरा विवाह 10 वी पास करने के पश्चात 1997 में हुआ। पति अच्छी नोकरी पर थे] अपनी लडकी सुखी रहेंगी इस सोच से ब्याह कराया गया। लेकिन कुछ ही दिनों में पत्ता चला की पति अव्वल शराबी थे] ससुराल में सोचा गया ब्याह करने से उसमें सुधार होंगा। पति को सुधारने का जिम्मा अनायास ही मेरे उपर आया। मैने भी आम गृहिणी की तरह पुरे तनमन से उन्हे सुधारने का प्रयास किया पर विफल रही। इसी दौरान मुझे एक लडका हुआ] पति व ससुराल वालों के अत्याचार से पीडीत रहने के पश्चात भी बच्चे के लिये सारा दुःख बिसारी] पर मेरे बच्चे की बीमारी व मेरे पास ईलाज के लिये किसी की भी मदत नही मिलने से मेरी हिम्मत टूट गई। और मैने सारी आपबिती मायकेवालों को बताई तबसे 1999 से आज तक मेरा परिवार मायका ही है।
पति में सुधार लाने हेतू प्रकृति के समुपदेशन केन्द्र में केस दर्ज की पर कोई भी परिणाम नही मिला] देखते देखते ही पांच साल गुजर गये।
मेरा बच्चा पांच साल का हो चुका था] मेरे मन में बहुत आक्रोश था की मै अकेली बच्चे की सारी जिम्मेदारी उठावू लेकिन कुछ भी जिम्मेदारी न लेकर केवल पिता कहकर लडका अपने पिता का नाम आगे बढाये यह मुझे मंजूर नही था। प्रचलित व्यवस्था में महिला की यह सोच व्यवहार्य नही थी इसका विरोध भी बहुत हुआ] पर मैने हार नही मानी। आर्थिक रूप से सक्षम होने हेतू संस्था के सहयोग से नर्सीग की टेªनिग पुरी की। डिवोर्स की केस कोर्ट में दाखील किया। एकतर्फी डिवोर्स मिला। गव्र्हमेंट के राजपत्र में लडके के नाम के साथ अपना नाम दर्ज किया। स्कुल में दाखीला तो मिल गया] पर जाती प्रमाणपत्र को लेकर बहुत भटकना पडा] जाती प्रमाणपत्र मेरी जाती व नाम से हो इसके लिये तहसिल के कोर्ट में केस दर्ज किया। तब उस वक्त के एस.डी.ओ.ने मुझे बताया की पिताजी के जाती के आधारपर ही बच्चे की जाती तय होती है] तुम्हारे नाम से जाती प्रमाणपत्र मिले ऐसा कोई कानुन नही है। उनका तबादला होने के पश्चात उनकी जगह पर आयी महिला अधिकारीने मेरे सारे कागजात चेक करके मुझे प्रमाण्पत्र दिलवाया। आज मेरा लडका बी.एस.सी. फायनल में है उसके नाम के साथ मेरा नाम व मेरी जाती का दस्तावेज है । कभी लडके को मित्र सवाल करते तो वह गर्व के साथ माँ का नाम बताता है। मेरे मन को शांती मिली की मेरा संधर्ष पुरा हुआ। हमारा पैतृक मकान भी पिताजी ने मेरे नाम से करवाया है। महिलाओं के कार्यक्रमों में मै अपने संधर्ष कहानी बताती हुँ। जिससे गांव की अन्य पीडीत बहनेा को मार्गदर्शन करती हुँ। समय रहा तो उनके साथ हक्क की लडाई में शामील होती हुँ।
So sad I couldn't read this your beautiful script. Hope you are doing well. My warm regards
Lizzy
हाय प्रतिभा,
क्या हाल है? क्या यह कहानी आपके बारे में है? इस प्रेरक कहानी को साझा करने के लिए धन्यवाद। यदि यह आप या कोई और है, तो मुझे खुशी है कि वे स्वतंत्र हैं और मुद्दा और नाटक खत्म हो गया है :-)
Thank you for sharing
Hi,
Thank you so much for your post. Looking forward to reading more of your posts.
Have a blessed and prosperous 2020.
Hello Pratibha,
How are you doing? Thank you for sharing this beautiful story of strength.
It shows how strong women are especially when their kids are involved, to change their lives and that of their kids.
If this is your story, you are an incredible strong woman. Congratulations to your son for having his BSc. He is fortunate to have a passionate, strong woman like you for his mom.
Continue to take care and impact.