His abusive words failed



 



लाँकडाऊन की वजह से जिंदगी की रफ्तार थम गई ऐसा महिलाओं को प्रतित होता है। एकल महिलाऐ तो विपरित परिस्थिती में चारो ओर मदत की आस लगाये थी] पर दैनिक जरूरते एक बार की मदत से खत्म नही होती। ऐसी स्थिती में जहाँ भी सुनाई देता की काम मिल रहा तो वे अपने जीवन की पर्वा न करते हुये काम की तलाश में दौडी जाती थी।



चन्द्रपुर के कार्यक्षेत्र के अधिकतर गांव बफर-झोन क्षेत्र में आते है। अप्रैल-मई माह में महुआँ के फुल व तेंदूपत्ता इकठ्ठा करने का कार्य गांव के लोग करते है। सुबह 15-20 की संख्या में लोग जंगल की ओर प्रस्थान करते है। उनकी आजिविका खेती के साथ जंगल की उपज पर भी निर्भर है।



इसबार लाँकडाऊन के चलते गांव में मजदूरी नही थी। लोगो को पैसे की आवश्यकता थी। वनविभाग से महुआँ इकठ्ठा करने की छुट भी थी। व्यापारी दलाल चोरी छिपे गांव की सीमा में आकर महुआँ की खरीददारी कर रहे थे एवं पैसे भी ज्यादा दे रहे थे।  वर्तमान की विषम परिस्थिती में लोगो का सब्र अपनी सीमाए लांध चुका था। लाचारी से जिने से बेहतर कुछ कमाये इस विचार से 5 अप्रैल से बोर्डा गांव के स्त्री-पुरूष जंगल में जाने लगे।



इसी गांव की रहिवासी निवृत्ता मांडवगडे 45 साल की एकल महिला थी। बडी लडकी का ब्याह हुआ व दो लडके जिनकी उम्र 18 13 साल की है इनका परिवार है। दलित जातीकी लडकी ने उॅंची जाती में विवाह करने से ससुराल में आना-जाना नही है। पति के निधन के पश्चात तो रिश्ता ही नही रहा। ऐसे में मजदूरी के भरोसे वे अपने बच्चो की परवरिश करती थी। महुआँ चुनने वे भी अपने छोटे बच्चे के साथ जंगल जाती थी।



दिनांक 8 अप्रैल को महुआँ इकठ्ठा करते वक्त शेर ने निवृत्ता पर हमला किया जिसमें उसकी मौत हुई। निवृत्ता की मौत शेर के हमले की वजह से होने से वन- विभाग की ओर से मुआवजे के रूप में बडी रक्कम उसके बच्चो को मिलेंगी। उसके दो बच्चे एक लडका व एक लडकी बालिग है] और छोटा अभी नाबालिग है। निवृत्ता की मृत्यू के पश्चात उसकी बडी बेटी जिसकी शादी हुई उसने अन्य रिश्तेदारों की सहाय्यता से अपने भाई्यों की देखभाल की] उनकी जिम्मेदारी उठाई है। कुछ रिश्तेदार इसलिये मदत कर रहे होंगे की मुआवजे का कुछ हिस्सा उन्हे भी मिलें। निवृत्ता के साथ घटी घटना को लेकर पुरा गांव खासकर महिलायें सदमे में है।



महुआँ के फुलो को चुनना व बेचना जहाँ एक ओर उन्हे अच्छी मजदूरी की आशा जगाये रखता है] वही दुसरी ओर निवृत्ता की घटना से उन्हे अपनी जान पर बना खतरा भी साफ दिखाई दे रहा है। निवृत्ता की मृत्यु के पश्चात स्वाभाविक ही था की गांव की अन्य महिलाऐ कुछ दिनों तक महुआँ चुनने जंगल में नही गई।



पति के निधन के पश्चात तो निवृत्ता ने कडी मेहनत से बच्चो का पालन-पोषण किया। लेकिन मृत्यु के पश्चात भी वह अपनी जान की कीमत से बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर गई।

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